श्री महावीर तपोभूमि की प्रासंगिकतामैं (मुनि प्रज्ञासागर) पुष्पगिरि से विहार कर जब उज्जैन आया तो मैंने यहाँ के इतिहास की विस्तृत जानकारी ली। मुझे ज्ञात हुआ कि उज्जयिनी ऐतिहासिक नगरी ही नहीं, तपोभूमि, पुण्यभूमि, निर्वाणभूमि भी है। मुझे यह जानकर अत्यधिक प्रसन्नता हुई तो इस बात का दुःख भी हुआ कि दिगम्बर जैन समाज के पास इस पौराणिकं एवं प्राचीन नगरी में ऐसा कुछ भी नहीं है जिस पर गर्व किया जा सके। अतः मैंने समाज को प्रेरणा दी कि इस ऐतिहासिक नगरी में कोई ऐतिहासिक कार्य होना चाहिये ताकि आने वाली पीढ़ी उज्जयिनी को श्री महावीर तपोभूमि के नाम से जान सके। मेरे इन विचारों को स्वीकार कर समाज ने उसी क्षण ‘श्री महावीर तपोभूमि’ नामक एक तीर्थ बनाने का संकल्प कर लिया।

कहाँ निर्मित हो श्री महावीर तपोभूमि?श्री महावीर तपोभूमि बनाने का संकल्प करते ही यह प्रश्न खड़ा हुआ कि तपोभूमि कहाँ निर्मित की जाय? वैसे तो उज्जयिनी का कण-कण पवित्र व पावन है। यहाँ की सम्पूर्ण भूमि पुण्य भूमि, तपोभूमि, सिद्धभूमि है, फिर भी उज्जयिनी के चारों ओर सभी उत्साही कार्यकर्ताओं ने भूमि देखी। अंत में उज्जैन से १० कि.मी. दूर इंदौर रोड पर बड़नगर बायपास में पिपल्या राघौ मोड़ की एक पाँच बीघा जमीन तपोभूमि के लिए क्रय कर ली गई। तत्पश्चात मेरे ससंघ सान्निध्य में १७ नवंबर २००५ को श्री महावीर तपोभूमि का भूमिपूजन व शिलान्यास हजारों लोगों की उपस्थिति में किया गया। आज तपोभूमि प्रगति के नए सोपान रच रही है।

कहाँ क्या है श्री महावीर तपोभूमि में ?श्री महावीर तपोभूमि के आधार स्तंम भगवान महावीर स्वामी का एक विशाल भव्य एवं शिखर युक्त मंदिर है। इस मंदिर में भगवान महावीर स्वामी की लाल पाषाण से निर्मित कमलासन सहित २१ फीट ऊँची प्रतिमा की स्थापना की गई। इस प्रतिमा के दाईं ओर भगवान आदिनाथजी की लाल पाषाण की अति मनोज्ञ प्रतिमा विराजित है। बाईं ओर भगवान पार्श्वनाथजी की श्याम वर्णी मनोहारी प्रतिमा विराजित की गई है। इस मंदिर के तलघर में रत्नमयी चौबीसी एवं लाल पाषाण से निर्मित कलिकुंड पार्श्वनाथ यंत्र (६X६ फीट) की स्थापना भी की गई है।

मुख्य मंदिर के दाईं ओर शनिग्रह अरिष्ट निवारक श्री मुनिसुव्रतनाथ मंदिर बनाया गया। इस मंदिर में काले पाषाण की ५ फीट ऊँची अष्ट प्रातिहार्य संयुक्त श्री मुनिसुव्रत नाथ भगवान की प्रतिमा विराजमान की गई है। प्रत्येक शनिवार को यहाँ शनिग्रह अरिष्ट निवारण हेतु विशेष पूजा विधि होती है।

मुख्य मंदिर के बाईं ओर कालसर्प योग अरिष्ट निवारक श्री नेधिनाथ पार्श्वनाथ मंदिर बनाया गया है। इस मंदिर में काले पाषाण की अष्ट प्रातिहार्य संयुक्त भगवान नेमिनाथ-पार्श्वनाथ की संयुक्त प्रतिमा विराजमान है। प्रत्येक अमावस्या के दिन यहाँ पर विधि-विधान से कालसर्प योग के दोष का निवारण करवाया जाता है।

श्री नेमिनाथ पार्श्वनाथ मंदिर के सामने श्री अभयघोष मुनिराज का मंदिर बनाया गया है। इस मंदिर में अभयघोष मुनिराज की श्वेत पाषाण से निर्मित मूर्ति एवं चरण चिह्न विराजमान हैं। इस मंदिर में प्रतिवर्ष अश्विन सुदी पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा) को प्रातःकाल निर्वाण लाडू चढ़ाया जाताहै।

श्री मुनिसुव्रतनाथ मंदिर के सामने श्री सुकुमालमुनिराज का मंदिर बनाया गया है। इस मंदिर में सुकुमाल मुनिराज की श्वेत पाषाण सेनिर्मित मूर्ति एवं चरण चिह्न विराजमान हैं।

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विश्व के सबसे बड़े चरण चिह्न

तपोभूमि में प्रवेश करते ही एक खूबसूरत गुलाबी पाषाण की शिल्पकारी कला युक्त अति मनोहारी छत्री का निर्माण किया गया है जिसमेंभगवन ऋषभदेव के विश्व के सबसे विशाल चरण चिह्न (७X७ फीट) विराजित किये गये हैं।

श्री महावीर तपोभूमि में आने वाले साधु-संतों के लिए साधनानुकूल एक सुंदर संत निवास निर्मित किया गया है जिसमें एक साथ १५-२० साधुओं के रहने की व्यवस्था है। आर्यिका माताजी के लिए पृथक व्यवस्था है। साधु-साध्वियों व त्यागी व्रतियों के आहार की व्यवस्था सुचारू रूप से आगमानुकूल हो सके अतः हवा व प्रकाश के युक्त एक आहार कक्ष बनाया गया है। साधु-संतों के प्रवचनों का लाभ उपयुक्त स्थान में मिल सके अतः एक भव्य एवं विशाल सभाग्रह का निर्माण किया गया है। श्री महावीर तपोभूमि में आने वाले यात्रियों के लिए सर्वसुविधायुक्त यात्री निवास का निर्माण किया गया है। यात्रियों के लिए भोजन की व्यवस्था सुव्यवस्थित हो अतः भोजनशाला भी निर्मित है। इन सबके अलावा एक सुंदर उद्यान बनाया गया है जिसमें समवशरण उद्यान एवं ऊर्जा कल्प विशेष आकर्षण का केंद्र है। यह उद्यान आध्यात्मिक ऊर्जा से संपन्न है। बच्चों तथा बड़ों के मनोरंजन के साधन भी यहाँ हैं। इसके साथ ही और भी बहुत कुछ मौजूद है इस महावीर तपोभूमि में, जिसे यहाँ आकर ही अनुभव किया जा सकता है।

॥ श्री सुकुमाल जी महामुनिराज ॥

उज्जयिनी के सेठ सुरेन्द्र दत्त और उनकी धर्मपत्नी सेठानी श्रीमती यशोभदा के सुपुत्र का नाम

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॥ श्री अभयघोष मुनिराज की सिद्धभूमि !!

-आचार्य हरिषेण जी कृत बृहत्कथा कोश के पृष्ठ 325 पर लिखा है काकंदीत स संप्राय श्रीमद्

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चारित्र चक्रवर्ती प्रथमाचार्य श्री शांतिसागर जी महामुनिराज

आचार्य श्री शांतिसागर जी मुनिराज का जन्म कर्नाटक प्रान्त के भोजग्राम में आषाढ़ वदी षष्टी

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विश्व के प्रथम विशालकाय चरण चिन्ह

ये विशालमय चरण चिन्ह भगवान आदिनाथ जी के है । भगवान आदिनाथ जी ने ही भारतभूमि

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वैशाली

अंतिम तीर्थकर भगवान श्री महावीर स्वामी के नाना राजा चेटक वैशाली केराजा थे। राजा चेटक

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पद्म - सरोबर

अंतिम तीर्थंकर भगवान श्री महावीर स्वामी बहत्तर वर्ष की उम्र में श्री बिहार करते हुए

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प्रथम आहार दाता “राजा कूल प्रभु प्रसादशाला

अंतिम तीर्थंकर भगवान श्री महावीर स्वामी का दीक्षा के दो दिन बाद प्रथम आहार दान

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कुण्डग्राम

अंतिम तीर्थंकर भगवान श्री महावीर स्वामीकी जन्मभूम बनने का जिसे अवसर मिला, उस ग्राम का

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महासती चन्दनबाला आहार कक्ष

वर्धमान चारित्र के धारक अंतिम तीर्थकर भगवान श्री महाबीर स्वामी छह माह के अंखड उपवास

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त्रजुकूला भवन

अंतिम तीर्थंकर भगवान श्री महावीर तीस वर्ष की भरी जवानी मे वैरागी होकर निर्ग्रन्थ मुद्रा

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