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॥ श्री अभयघोष मुनिराज की सिद्धभूमि !!

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॥ श्री अभयघोष मुनिराज की सिद्धभूमि !!

-आचार्य हरिषेण जी कृत बृहत्कथा कोश के पृष्ठ 325 पर लिखा है 

काकंदीत स संप्राय श्रीमद् उज्जयिनीं पुरीम्। वीरासनेन संतस्थे अभयघोष महामुनिः //10// 

चण्डवेगाभिधानेन तत्पुत्रेणास्य कोपत: । पूर्व वैरेण संछिन्नं हस्तपाद चतुष्टयम् //11// 

साहित्व अमयघोषोपि चण्डवेगोपसर्गकम् । केवलज्ञान मुत्पाद्य प्रययौ मोक्षमक्षयम् //12// 

एक बार अभयघोष मुनिराज बिहार करते हुए उज्जयिनी आयें और वीरासन से ध्यानमग्न हो गये। 

तब उनका पुत्र चण्डवेग उज्जयिनी आया। पूर्व जन्म के बेर के कारण उसे ऐसी दुर्बुद्धि जागी कि उसने मुनिराज के चारों हाथ पैर काट दिये। 

समता भाव से उपसर्ग सहन करते हुए मुनिराज आत्मलीन रहें और उन्हें केवल ज्ञान उत्पन्न हो गया और वे उसी समय मोक्ष चले गये। 

श्री अभयघोष मुनिराज की मोक्ष स्थली होने से उज्जयिनी सिद्ध क्षेत्र है। 

इसी कारण आचार्य श्री 108 श्री प्रज्ञासागर जी मुनिराज ने इसे सिद्ध क्षेत्र कहकर पुकारा है। 

यह उन्हीं भगवान अभयघोष की मूर्ति और चरणचिन्ह है, जिनके आप दर्शन कर रहें है। 

इनके अलावा श्री विजय मुनिराज और सुधर्म मुनिराज ने भी केवलज्ञान यहीं से प्राप्त किया है। ऐसा भी उल्लेख मिलता है। 

जय अभयघोष 

जय सिद्ध क्षेत्र