वर्धमान चारित्र के धारक अंतिम तीर्थकर भगवान श्री महाबीर स्वामी छह माह के अंखड उपवास के बाद आहार चर्या हेतु अत्यंत कठिन, अभीगह (विधि) लेकर कौशाम्बी आये।
जैसे ही बंधनयुक्त, अश्रुपूरित, केशविहिना राजकुमारी महासती चन्दनबाला को प्रभु के आहारार्थ आने की खबर मिली,वह उसी अवस्था मे करुण स्वर से पुकार उठी- हे स्वामी नमोस्तु - नमोस्तु - नमोस्तु
जैसे ही प्रभु ने देखा उनका अभीगृह पूर्ण हो गया है तो वे चन्दनबाला के समक्ष खड़े हो गए।
प्रभु के खड़े होते ही सती के बंधन खुल गये, वह केशयुक्त हो सर्वाग से सुन्दर हो गयी !
तब सती ने पड़गाहन-उच्चासन-पाद प्रक्षालन-पूजन-नमन-मन-वचन-काय आहार शुद्धि सहित इन नवधा भक्तियो के साथ प्रभु को आहार दिया ।
सती के प्रभाव से कोदों का भात प्रभु के हाथ मे जाते ही खीर रूप मे परिवर्तित हो गया ।
चन्दना से आहार लेकर प्रभु ने चंदना का ही नहीं, स्त्री जाति का उद्दार कर दिया ।
चन्दनवाला गृहस्थ जीवन मे भगवान महावीर स्वामी की मौसी थी, तो उनके समवसरण मे प्रथम शिष्या के रूप मे प्रतिष्ठित थी।
उसी महासती के नाम से तपोभूमि के इस आहार कक्ष का नाम “महासती चन्दनवाला आहार कक्ष” रखा गया है।
आहार कक्ष में उत्तम भावों से आहार दान हेतु आप सादर आमंत्रित हैं।