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त्रजुकूला भवन

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त्रजुकूला भवन

  • अंतिम तीर्थंकर भगवान श्री महावीर तीस वर्ष की भरी जवानी मे वैरागी होकर निर्ग्रन्थ मुद्रा के धारी, वीतरागी दिगम्बर मुनि हो गये । 
  • बारह वर्षों तक प्रभु ने कठिन तपस्या की । 
  • एक दिन वे मुनिराज बिहार प्रांत के जृम्भिका ग्राम के निकट बहने वाली  त्रजुकूला नदी के तट पर पहुँचे और शाल वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ हो गये । 
  • ध्यान के बल से प्रभु ने चार घातिया (ज्ञानावरण- दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय) कर्मों को नष्ट करके केवलज्ञान प्राप्त किया और वे तीर्थंकर केवली हो गये | 
  • प्रभु के ध्यान और ज्ञान से पवित्र हुई उस पतित पावनी त्रजुकूला नदी के नाम से ही इस भवन का नाम “त्रजुकूला रखा गया है । 
  • आज आप इस भवन मे रुकने जा रहे हैं, यह आपका सौभाग्य है । 
  • इस भवन मे आपका निवास आपके ज्ञान और ध्यान का कारण बने । 
  • इसी भावना के साथ त्रजुकूला भवन मे आपका हार्दिक स्वागत है । 
  • जय शुक्ल ध्यान - जय केवलज्ञान