उज्जयिनीनगरी की ऐतिहासिकता में भगवानमहावीर, अभयघोष मुनिराज और सुकुमाल मुनिराज के साथ साथ मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम, नारायण श्रीकृष्ण, कोटिभट्ट श्रीपाल, महामुनि अनुकम्पाचार्य, अंतिम श्रुतकेवली आचार्य भद्रबाहु, कुमुदचंद्राचार्य,महासती मैना सुंदरी, महासती मनोरमा के नाम प्रमुखता से जुड़े हुए हैं। जिनका विस्तृत इतिवृत्तशास्त्रों में उल्लिखित है। विस्तार से जानने के इच्छुक पाठकगण जैन शास्त्रों का अध्ययन करें।
उज्जयिनी और भगवान महावीर
आचार्य गुणभद्र स्वामी ने उत्तर पुराण में लिखा है कि भगवान महावीर स्वामी दीक्षा ग्रहण करने के बाद विहार करते हुए उज्जयिनी आए और उज्जयिनी के अतिमुक्तक नामक श्मशान में आतापन योग धारण करके ध्यानमग्न हो गए। इसी श्मशान में रहने वाले स्थाणुरुद्र नामक दैत्य ने रात्रिकाल में मुनिराज महावीर पर भयंकर उपसर्ग किया परंतु वह प्रभु को ध्यान से विचलित न कर सका। अतः प्रभु के तेज से परास्त हो क्षमा याचना की और प्रभु का दास बन गया। भगवान महावीर स्वामी की इसी तपस्या की स्मृति स्वरूप यह श्री महावीर तपोभूमि निर्मित की गई है।
उज्जयिनी और अभयघोष मुनिराज
काकन्दी के राजा का नाम था अभयघोष। एक दिन एक कछुए के चारों पैरों को बाँधकर महाराज अभयघोष ने उसे एक लकड़ी में लटकाया और तलवार के एक ही प्रहार से उसके चारों पैर काट दिये। वह कछुआ अत्यंत ही वेदना से मरा और मरकर उसी राजा अभयघोष का पुत्र चंडवेग हुआ। एक दिन राजा अभयघोष ने चंद्रग्रहण देखकर वैरागी हो मुनि दीक्षा ले ली। एक बार अभयघोष मुनिराज विहार करते हुए उज्जयिनी आए और वीरासन में बैठ ध्यानमग्न हो गये। तभी उनके पुत्र चंडवेग का उधर आना हुआ। जैसे ही उसने मुनिराज को देखा, उसे पूर्व जन्म का बैर स्मरण हो गया। उसने मुनिराज पर उपसर्ग किया और मुनिराज के चारों हाथ-पैर काट दिये। मुनिराज इस उपसर्ग को सहन कर केवलज्ञानी हो गए और उसी क्षण उन्हें मोक्ष कीप्राप्ति हो गई। इसी वजह से उज्जयिनी को अभयघोष मुनिराज की निर्वाण भूमि होने का गौरव प्राप्त हुआ।
उज्जयिनी और सुकुमाल मुनिराज
सेठ सुरेन्द्रदत्त और सेठानी यशोभद्रा के पुत्र का नाम था सुकुमाल। पिता के दीक्षा लेनेके बाद यौवनावस्था को प्राप्त सुकुमाल का विवाह ३२ सुकुमारी कन्याओं के साथ संपन्न हुआ। मुनिराज की भविष्यवाणी के अनुसार मुनि दर्शन होते ही आपको वैराग्य हो गया और आपने मुनि दीक्षा ले ली। सुकुमाल मुनिराज ध्यानलीन थे तभी एक स्यालिनी अपने चार बच्चों के साथ वहाँ आई। पूर्व बैर का स्मरण होते ही उसने मुनिराज के पैरों को खाना प्रारंभ कर दिया। वह तीन दिन तक मुनिराज को खाती रही। शांत भाव से उपसर्गों को सहन कर मुनिराज आयु पूर्ण कर अच्युत स्वर्ग में महर्द्धिक देव हुए। अतः उज्जयिनी सुकुमाल मुनि की जन्म व तपस्थली भी है।